दिल्ली में हवा की गुणवत्ता में कमी का एक मुख्य कारक खेतों में जलाई जाने वाली पराली भी है। इस मुद्दे को दूर करने के लिए, भारत, स्वीडिश तकनीक का परीक्षण कर रहा है जो चावल के ठूंठ (पराली) को ‘जैव-कोयला’ में बदल सकता है।
टॉरफिकेशन टेक्नोलॉजी − चावल के ठूंठ (पराली) से बायो-कोल
- टॉरफिकेशन (Torrefaction) एक थर्मल प्रक्रिया है, जिसमें बायोमास को कोयले (Coal) जैसी सामग्री में परिवर्तित किया जाता है, जो मूल बायोमास की तुलना में कई गुना बेहतर ईंधन हैं।
- इस प्रक्रिया में चावल के ठूंठ (पराली) या लकड़ी के बायोमास को 250°C – 350°C तक गर्म किया जाता है।
- यह बायोमास के तत्वों को कोयले की तरह छोटे-छोटे टुकड़ों में परिवर्तित कर देता है। जिनका उपयोग दहन के लिए, स्टील और सीमेंट उत्पादन जैसे औद्योगिक अनुप्रयोगों के लिए किया जा सकता है।
लाभ
- इस तकनीक द्वारा प्रत्येक घंटे 150-200 किलोग्राम धान की पराली को जैव-कोयला में परिवर्तित किया जा सकता है, जिससे CO2 उत्सर्जन में लगभग को 95% तक कमी आने की संभावना है।
- Torrefied बायोमास अधिक भंगुर है।
- जैविक अपघटन और पानी की मात्रा कम से कम होने के कारण, Torrefied बायोमास का भंडारण काफी सरल तरीके से किया जा सकता है।
- Torrefied बायोमास को कोयले की तुलना में एक आदर्श विकल्प है क्योंकि इसमें कम परिवहन लागत, और कम सल्फर आदि लाभ हैं।