चर्चा
आर्थिक सर्वेक्षण 2017-18 के अनुसार पुरुषों का रोजगार के लिए गाँवों से शहरों की तरफ पलायन होने के कारण कृषि कार्य में महिलाओ की भूमिका में वृद्धि हो रही है। अतः महिलाओं की कृषि कार्य में हिस्सेदारी बढ़ी है।
कृषि कार्य में महिलाओं की हिस्सेदारी
- राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण कार्यालय (NSSO – National Sample Survey Organisation) के आँकड़ों के अनुसार पिछले तीन दशकों में कृषि कार्य क्षेत्र में महिलाओं एवं पुरुषों दोनों की संख्या में कमी आई है।
- पुरुषों की संख्या 81% से घटकर 63% हो गई है ।
- महिलाओं की संख्या 88% से घटकर 79% हो गई है।
- आर्थिक रूप से सक्रिय 80% महिलाएँ कृषि क्षेत्र में कार्यरत हैं। इनमें से 33% मज़दूरों के रूप में और 48% स्वनियोजित (Self employed ) किसानों के रूप में कार्य कर रही हैं।
कृषि कार्य में महिलाओं का महत्त्व
- भारत और अन्य विकासशील देशों की अर्थव्यवस्था में ग्रामीण महिलाओं का सबसे अधिक योगदान है। विश्व स्तर पर महिलाओं को अधिकार दिये जाने के बाद कृषि उत्पादकता में सुधार हुआ है।
- भारत में कृषि कार्य में लगे लगभग 18% परिवारों का नेतृत्व महिलाएँ करती हैं। कृषि में ऐसा कोई कार्य क्षेत्र नहीं जिसमें महिलाओं की हिस्सेदारी न हो।
चुनौतियाँ और समाधान
- 2011 की जनगणना के अनुसार, कुल महिला श्रमिकों की संख्या का 55% कृषि कार्य में और 24% कृषि मज़दूर के अंतर्गत कार्यरत थीं। किंतु भू-स्वामित्व (Land ownership) पर महिलाओं का स्वामित्व केवल 12.8% है जो लैंगिक असमानता को दर्शाता है।
- महिलाओं की भूमि, सिंचाई सुविधा का अभाव और प्रौद्योगिकी तक पहुँच की कमी एक मुख्य चुनौती है।
- आर्थिक सर्वेक्षण 2017-18 के अनुसार , भारत की स्थिति को देखते हुए ग्रामीण महिलाओं को कृषि संबंधी प्रशिक्षण दिये जाने की आवश्यकता है।
- लघु और सीमांत भू–जोतों की उत्पादकता बढ़ाने, महिलाओं को ग्रामीण अर्थव्यवस्था में प्रगति की सक्रिय एजेंटों के रूप में एकीकृत करने और कृषि विस्तार सेवाओं में महिलाओं की विशेषज्ञता के साथ ही पुरुषों और महिलाओं की भागीदारी को बढाने के लिये लिंग-विशिष्ट उपायों पर आधारित एक समावेशी और परिवर्तनकारी कृषि नीति की आवश्यकता है।
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