राजनीतिक विरोधियों को रिहा करने के सुप्रीम कोर्ट के आदेश को मानने से इनकार कर मालदीव के राष्ट्रपति अब्दुल्ला यामीन ने 5 फरवरी को 15 दिन के आपातकाल की घोषणा कर दी है जिससे मालदीव का राजनीतिक संकट और गहरा गया है। स्पष्ट है कि आपातकाल में नागरिकों के अधिकार सीमित हो जाते है।
पृष्ठभूमि
- 2008 में मोहम्मद नशीद ने तत्कालीन राष्ट्रपति अब्दुल गयूम को चुनाव में हरा लोकतांत्रिक तरीके से चुने जाने वाले मालदीव के पहले राष्ट्रपति थे।
- वर्ष 2012 में मोहम्मद नशीद को एक न्यायाधीश पर भ्रष्टाचार का आरोप लगाकर उन्हें जेल में डालने पर अपदस्थ कर दिया गया।
- मालदीव के वर्तमान राष्ट्रपति अब्दुल्ला यामीन 2013 में हुए पुनर्निर्वाचन में विजयी होने के बाद से सत्ता पर काबिज़ हैं।
- वर्ष 2015 मोहम्मद नशीद को आतंकवाद के आरोप में 13 वर्ष की सज़ा सुनाई गई थी। मोहम्मद नशीद वर्तमान में निर्वासित जीवन व्यतीत कर रहे हैं।
वर्तमान घटनाक्रम
- 1 फरवरी 2018 को सुप्रीम कोर्ट ने ऐतिहासिक फैसला देते हुए पूर्व राष्ट्रपति मोहम्मद नशीद के खिलाफ चली सुनवाई को असंवैधानिक बताया और अन्य राजनीतिक कैदियों को रिहा करने का आदेश दिया ।
- इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने 12 सांसदों की सदस्यता बहाल करते हुए मालदीव की संसद (मजलिस) के सत्र को बुलाने का भी आदेश दिया था। सुप्रीम कोर्ट के इस निर्णय 3 फरवरी को संसद को अनिश्चितकाल के लिये स्थगित कर दिया गया।
- मालदीव सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का पालन करने की मांग करने वाले को बर्खास्त कर दिया गया।
- मालदीव के अटॉर्नी जनरल ने घोषणा कर दी कि न्यायालय के आदेश की बजाय अधिक महत्त्वपूर्ण है।
भारतीय संदर्भ
- भारत सहित अमेरिका, यूरोपीय संघ और कई अन्य देशों ने अब्दुल्ला यामीन से सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का अनुपालन सुनिश्चित करने की मांग की है। लेकिन वर्तमान में भारत मालदीव में एक प्रभावी भूमिका निभाने की स्थिति में नहीं है।
- तीन साल पहले भारतीय प्रधानमंत्री द्वारा मालदीव की यात्रा रद्द करने से यह संकेत गया कि मालदीव पूरे दक्षिण एशिया और हिंद महासागर क्षेत्र में एकमात्र ऐसा देश है जहाँ की भारतीय नेतृत्व द्वारा यात्रा नहीं की गई।
- इसके अतिरिक्त मालदीव ने राष्ट्रमंडल की सदस्यता त्याग दी है और सार्क संगठन भी अपनी अपेक्षाओं पर खरा नहीं उतर पा रहा है। अत: मालदीव में भारत का प्रभाव और सीमित हो गया है।
- इस समाधान के लिये अंतर्राष्ट्रीय समुदाय से ठोस कार्रवाई किये जाने की अपेक्षा है ताकि मालदीव को इस संवैधानिक संकट से बचाया जा सके।